Wednesday, 11 July 2012

श्रेया साक्षात्कार

ऊ..ला..ला.. के बाद 'अग्निपथ' का आइटमनंबर चिकनी चमेली.. इन दिनों खूब सुनने को मिल रहा है। जाहिर है गायिका श्रेया घोषाल के चेहरे पर एक खास खुशी झलक रही है। अभी तक आइटम नंबर के मामले में गायिका सुनिधि चौहान ने अपनी धाक जमा रखी थी, अब श्रेया भी कमतर नहीं हैं। ऊ..ला..ला.. की तुलना में चिकनी चमेली.. की गायकी का पूरा श्रेय उन्हें मिला है। अब वह बेहिचक कबूल करती हैं कि आइटम नंबर उनके लिए एक चैलेंज बन कर आते हैं। मदन मोहन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, लता मंगेशकर जैसे संगीत रत्न को अपना आदर्श मानने वाली श्रेया का यह नया रूप है। व्यक्तित्व संपन्नता में कई हीरोइनों को मात देनेवाली श्रेया को अपना ग्लैमर परदे पर नहीं, सुरों मे पेश करना अच्छा लगता है। यही वजह है कि शुद्घ शास्त्रीय गाने हो या धूम-धड़ाके वाले गाने, वह हर जगह बहुत सहज हैं। एक ताजा मुलाकात में इस 27 वर्षीय गायिका ने अपने बारे में और भी बहुत कुछ बताया। 
 
 
 
 
 
डर्टी पिक्चर के ऊ..ला..ला.. और अग्निपथ के चिकनी चमेली के बीच क्या फर्क महसूस किया है?
कुछ खास नहीं है। हर नया आइटम नंबर आपसे कुछ अलग चाहता है। बतौर गायिका मैं इस फर्क को अच्छी तरह से पकड़ने की कोशिश करती हूं। फिल्म की सिचुएशन, किस हीरोइन पर फिल्माया जायेगा, कैसा माहौल रहेगा आदि ऐसी कुछ बातों को जेहन में अच्छी तरह से बिठाने के बाद मैं मन-ही-मन एक तैयारी करती हूं। बाकी बातें म्यूजिक डायरेक्टर आसान कर देता है।  
 
 
 
 चिकनी चमेली के लिए क्या आपने कोई विशेष तैयारी की थी?
हां, मैंने अपनी आवाज को काफी बदला था। इसके संगीतकार अजय अतुल भी ऐसा चाहते थे। गानों के बोल को मैंने अच्छी तरह से समझा था, ताकि मेरी आवाज में भी उसका अर्थ उभर कर आये। इससे पूरे गाने का मूड और खिलकर सामने आता है। मुझे ऐसे कई फोन आ रहे हैं, जिसमें यह कहा जा रहा है कि इस गाने में मेरी आवाज पहचान में नहीं आती है।  मैं भी तो यही चाहती थी।  
 
 
 
ऊ..ला..ला.. में बप्पी दा ज्यादा छाये नजर आते हैं?
उनकी आवाज ऐसे गानों के साथ बहुत मेल खाती है। फिर उनका अनुभव भी इस गाने में बोलता है। इस गाने में उनका छा जाना तो नेचुरल था। वाकई में उनके साथ ताल मिलाने में मुझे बहुत मजा आया।  
 
 
 
इन दिनों आप और सुनिधि ही महिला गायिका के तौर पर छायी हुई हैं?
हम दोनों ही म्यूजिक हंट शो से सामने आये हैं। लगातार मेहनत और रियाज से हमने अपनी अलग पहचान बनायी है। अच्छे गानों के साथ पूरा न्याय किया है। कभी अच्छे गानों का हम इंतजार करते थे। अब वह प्रतीक्षा समाप्त हो चुकी है और हमारे गाने अब हमारे पास आने लगे हैं।  
 
 
 
आइटम नंबर स्टेज शो के लिए कितने सहायक साबित होते हैं?
चूंकि आइटम नंबर में काफी धूम-धडाका होता है, इसलिए इनकी मांग कुछ ज्यादा होती है। पर चूंकि ढेरों श्रोता गंभीर गाने भी सुनना चाहते हैं, इसलिए वैरायटी का ख्याल रखना पड़ता है। सच कहती हूं, मुझे तब बहुत अच्छा लगता है, जब श्रोता आज भी कुछ पुरानी फिल्मों देवदास, लगे रहो मुन्नाभाई, साया आदि के गानों की फरमाइश करते हैं।  
 
 
 
गायन को करियर बनाना है, यह ख्याल आपके जेहन में कैसे आया?
चार साल की उम्र से मां के साथ बाकायदा हारमोनियम बजाकर गाना गाती थी।  तब मेरे मां-बाबा ने मेरे गायन शौक को और बढ़ावा देने के लिए मुझे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा देना जरूरी समझा। वह मुझे शास्त्रीय संगीत के गुरु महेशचंद्र शर्मा के पास ले गये।  इसके बाद लगभग डेढ़ साल तक मैंने प्रसिद्ध संगीतकार कल्याणजी भाई से तालीम ली। फिर मुक्ता भिंड़े जी से शास्त्रीय सीखना शुरू किया। तभी मैंने सोच लिया था, जो कुछ भी करूंगी, संगीत के क्षेत्र में ही करूंगी। जी टीवी के टेलेंट हंट शो सारेगामा में पहली बार में ही मुझे मौका मिल गया। इसके बाद ही भंसाली जी ने देवदास के लिए मौका दिया। फिर सारी बातें धीरे-धीरे आसान होती गयीं।  
 
 
 
आज के संगीत के बारे में क्या सोचती हैं?
पुराने दौर की तुलना में आज खराब गाने बहुत ज्यादा आ रहे हैं। ऐसे ढेरों गायक अपने गाने रिकॉर्ड करा रहे हैं, जिन्हें गाना आता ही नहीं। विदेश से भी बहुत सारे गायक यहां गाना गाने के लिए आ रहे हैं। लेकिन संगीत रसिक श्रोता आज भी लता मंगेशकर, आशा भोंसले, किशोर कुमार, रफी साहब, हेमंत कुमार आदि गायकों को ही सर्वाधिक सुनना पसंद करते हैं। रियलिटी शो में गाने गाकर कई गायक बहुत वाहवाही लूटते हैं, पर इससे आपकी संगीत समझ की सही जानकारी नहीं मिलती है। यह समझ सिर्फ लगातार रियाज के बाद ही आ सकती है।  
 
 
 
नये संगीतकार  कितना आकर्षित करते हैं ?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज के संगीतकारों में बहुत ऊर्जा है। वह स्क्रिप्ट को देखकर काम कर रहे हैं, पर समय का अभाव सब कुछ गड़बड़ कर रहा है। असल में सब कुछ तुरत-फुरत करने के चक्कर में सार्थक सुर रचना प्रभावित हो रही है। उससे सीधे-सीधे मेलोडी की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। अब गानों में पहले जैसे साज नहीं बजाये जा रहे हैं। अच्छी धुन के लिए आपको पूरा समय निकालना होगा। 
 
 
 
 कब शुरू और खत्म होती है आपकी रूटीन लाइफ?
मैं अमूमन सुबह नौ से दस बजे के बीच उठती हूं। रियाज, गाने सुनना यह सब रात को करना अच्छा लगता है। रात को बारह बजे के बाद घर के सब लोग सो जाते है। मोबाइल भी नहीं बजता है। तब संगीत को लेकर मेरी सोच शुरू होती है। अमूमन रियाज के समय तानपुरा का इस्तेमाल नहीं करती, हारमोनियम लेकर बैठती हूं। मेरा एक की-बोर्ड है, उसका भी इस्तेमाल करती हूं और कोई धुन बनाने पर उसे रेकॉर्ड करके रखती हूं।  लेकिन इसे अपने शौक के लिए करती हूं। संगीत के अलावा रात को किताबें पढ़ना भी बहुत पसंद है।  
 
 
 
अपनी फिटनेस के लिए कितना समय निकाल पाती हैं?
मैं बीच-बीच में ही जिम जाती हूं। ब्यूटी पार्लर के पास फटकने की इच्छा नहीं होती। मेरी त्वचा और बालों का ख्याल मेरी मां रखती हैं। रात को मेरे सिर पर बहुत अच्छी तरह से नारियल का तेल लगा देती हैं। सुबह उठकर बालों को बहुत अच्छी तरह से धो लेती हूं। बस ऐसे ही कुछ बातों का ख्याल रख कर मैं अपनी फिटनेस को मेंटेन रखती हूं।

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